अलीगढ़। गांव कलाई, दाउदपुर, भवनगढ़ी – नाम बदलते हैं, कहानी वही रहती है। मंगलवार शाम को पुलिस को सूचना मिली कि दाउदपुर के पास बाग में कुछ युवक ‘वारदात की मीटिंग’ कर रहे हैं। अब बाग में आम, अमरूद नहीं – तमंचों का ‘पक्वान’ पक रहा था!
मंगलवार शाम करीब 4 बजे मुखबिर से सूचना मिलते ही साधू-आश्रम चौकी के दरोगा अमर प्रकाश, मोहर सिंह और जितेंद्र पारासर भारी भरकम पुलिस फोर्स के साथ गांव दाउदपुर पहुंचे, और फिर शुरू हुई दाउदपुर के निकट बाग की 'घेराबंदी'।
घेराबंदी क्या थी, जैसे फिल्म ‘शोले’ की रीमेक शूट हो रही हो – चार युवक धर दबोचे गए। जिनमें दाउदपुर का विष्णु, दो हरदुआगंज के लखन व संजू और नयाबांस नरेंद्रगढ़ी का हिमांशु शामिल थे।
💥 स्पॉयलर अलर्ट: दरोगा अमर प्रकाश खुद भी इस एक्शन सीन में चोटिल हो गए। मगर पुलिस का जोश बना रहा। इस पुलिस रेड में पकड़े गए युवकों से तमंचे बरामद होने की ‘चर्चा’ है – चर्चा मतलब पक्की जानकारी अभी आई नहीं है।
अब कमाल की बात ये रही कि ये चारों युवक 24 घंटे बाद तक थानाध्यक्ष धीरज यादव की पूछताछ से ही नहीं गुजर सके। करीब 28 घंटे तक युवक थाने में ‘हवा’ में रहे, मगर – किसी भी कागज़ पर नहीं चढ़े। पूछो क्यों?
एसओ धीरज यादव कहते रहे कि “अभी पूछताछ चल रही है”, फिर यह कहने लगे कि “इनका आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।” वहीं लोग कहते दिखे कि दलालों के साथ ‘सेटिंग’ का अभिनय चल रहा था, फैसला इंटरवल के बाद आएगा। और वाकई, रात को फैसला आया – युवकों को थाने से बाइज्जत वरी कर दिया गया।
अधिकारियों को किया जा रहा भ्रमित
हरदुआगंज में आए दिन फायरिंग की घटनाएं हो रही हैं, खासकर कलाई क्षेत्र इसका मुख्य जोन बनता जा रहा है।
पुलिस पिछले दो माह से कलाई के डेरी कारोबारी मनोज गुप्ता की दुकान के बाहर बैठकर दाउदपुर के हमलावरों से उनकी सुरक्षा कर रही है।
ऐसे में बाग वाली कार्रवाई पर कई अनुत्तरित सवाल खड़े हो गए हैं:
- हरदुआगंज और नयाबांस के युवक दाउदपुर के बाग में क्या कर रहे थे?
- यदि आपराधिक योजना की पुख्ता सूचना नहीं थी तो बाग की घेराबंदी क्यों की गई?
- अगर कोई अपराध नहीं था तो युवकों को 28 घंटे हवालात में क्यों रखा गया?
दारोगाओं से पूछें पुलिस कप्तान... सच आ जाएगा सामने।
इस मामले का सच कार्रवाई में शामिल दरोगा, सिपाही व होमगार्ड तक जानते हैं, मगर उनकी हिम्मत कहां जो थानाध्यक्ष की मुखालफत करें। वरिष्ठ अधिकारियों तक गलत रिपोर्ट पहुंचाई जा रही है। अब अगर सच सामने लाना है तो पुलिस कप्तान और एसपी देहात को खुद इन दरोगाओं से पूछताछ करनी होगी।
कुछ पुलिसकर्मी कहते भी सुने गए – "क्राइम कंट्रोल को जान पर खेलते हुए गर्मी में मेहनत हम करें, और यहां एसी में बैठकर सौदा होता है!"
‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ वाली कार्रवाई पर थाने के जिम्मेदारों को शायद शर्म भी नहीं आती।
🔫 गोलीबारी का क्रॉनिकल – डर की डायरी
- 17 अप्रैल: गांव कलाई में डेयरी कारोबारी मनोज की दुकान पर दर्जनभर युवक असलाह लेकर पहुंचे, पीटा और चौथ न देने पर धमकाया।
- 30 अप्रैल व 4 जुलाई: भवनगढ़ी में एक ही घर पर दो बार फायरिंग – घरवालों को लगने लगा कि ये घर नहीं, शूटिंग रेंज बन गया है।
- 13 मई: वही मनोज फिर बना टारगेट, नकाबपोश बाइकर्स ने फायरिंग की – किस्मत अच्छी थी, जान बच गई।
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