अलीगढ़। पत्रकारों पर हमला करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज क्या हुआ, प्रधानों की नींद हराम हो गई। हालात ऐसे बने कि इलाके भर के दर्जनों प्रधान एकजुट होकर थाने पहुंच गए और पत्रकारों के खिलाफ मनगढ़ंत तहरीरें ठोकने लगे। साफ है — हमला तो किया, अब जब कानून ने दस्तक दी तो "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे" वाली कहावत चरितार्थ करने निकले।
पत्रकार ने थाने में तहरीर देकर साफ-साफ आरोप लगाया था कि लोधा थाना क्षेत्र के गाँव अटलपुर के प्रधान पति समेत 8–10 लोग जानलेवा हमला कर गए। मोबाइल तोड़ा, ATM कार्ड और 7500 रुपये कैश गायब कर दिए। गाली-गलौज और लाठी-डंडे का खेल भी चला। मुकदमा दर्ज हुआ तो प्रधानों के माथे पर पसीना आ गया।
अब पत्रकार को न्याय मिलने के बजाय प्रधानों की पूरी जमात उसी थाने में जाकर पत्रकार पर ही उल्टे आरोप मढ़ने लगी। यानी जुर्म किया, फिर बचाव में झूठ की इमारत खड़ी कर दी।
सवाल ये है कि — अगर प्रधानों का दामन साफ है तो इतनी बौखलाहट क्यों? थाने में भीड़ लगाकर दबाव बनाने की नौटंकी आखिर किसलिए?
लोकतंत्र में पत्रकार पर हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, ये आम जनता की आवाज़ दबाने की कोशिश है। लेकिन इस बार मामला पलट गया। मुकदमा दर्ज होते ही प्रधानों की गिनती अपराधियों में होने लगी और यही हकीकत उन्हें नागवार गुज़र रही है।
कानून की नजर में अब ये लड़ाई सीधी है —
सच बनाम मनगढ़ंत।
और जनता भी देख रही है कि पत्रकार की कलम से डरे प्रधान आखिर कितनी झूठी तहरीरें घिसकर अपनी इज्जत बचा पाएंगे।
 
