बुलंदशहर। दानवीर कर्ण की धरती पर इस बार किसकी चमकेगी किस्मत, कभी यंहा से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे कल्याण सिंह, जानिए 1952 से लेकर 2017 तक का पूरा इतिहास।

 

ब्यूरो ललित चौधरी

डिबाई विधानसभा सीट की गिनती उत्तर प्रदेश की अहम सीटों में होती हैं। क्योंकि डिबाई सीट अपने सियासी महत्व के साथ एतिहासिक दृष्टि से भी प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

डिबाई विधानसभा के अंतर्गत कर्णवास, राजघाट, बेलोंन मंदिर एवं नरौरा परमाणु विद्धुत केंद्र जैसे स्थान आते हैं, जो पवित्र पावनी गंगा नदी के किनारे होने के कारण प्रसिद्ध हैं। इस सीट पर कभी राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे रहे कल्याण सिंह तक चुनाव लड़ चुके हैं। कल्याण सिंह की पहचान उत्तर प्रदेश में बीजेपी के मुख्यमंत्री के रूप में रही है और इसी वर्ष उनका देहांत हुआ है।

ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है डिबाई

बुलंदशहर जिले के अंतर्गत सात विधानसभा सीट आती है, जिसमें एक डिबाई सीट है। यह सीट राजनीतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। डिबाई के समीप पवित्र पावनी गंगा नदी बहती है, जो कि निकटम गांव कर्णवास क्षेत्र में आती है। कर्णवास क्षेत्र का सीधा संबंध महाभारत काल से भी माना जाता है। कर्णवास के बारे में ऐसी मान्यताएं है कि यहां गंगा किनारे एक शिला है जिस पर महाभारत काल के योद्धा दानवीर कर्ण गंगा स्नान के बाद सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे। आज भी यह शिला स्थित है।

बेलोन देवी का मंदिर है प्रसिद्ध

डिबाई क्षेत्र के बेलोन गांव में स्थित सर्व मंगला देवी (बेलोन देवी) का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में मान्यताएं है कि नौ देवी के दर्शन के बाद सर्व मंगल देवी के दर्शन करने आवश्यक होते है, तभी मन्नत पूरी होती है। नवरित्र और गंगा स्नान पर यहां मेला लगा है, जिसमें दूरदराज से भारी संख्या में लोग आते हैं।

जानें राजनीतिक इतिहास

डिबाई विधानसभा सीट पर इस वक्त बीजेपी का कब्जा है और यहां से अनीता लोधी राजपूत विधायक हैं। 1952 से लेकर अब तक डिबाई सीट पर 18 बार चुनाव हुए हैं। कांग्रेस के इर्तजा हुसैन ने 1952 में पहली बार इस जीत हासिल की थी। उसके बाद 1957 के चुनाव में जनसंघ के प्रत्याशी हिम्मत सिंह ने जीत हासिल की। हिम्मत सिंह 1962, 1967, 1969, 1974 और 1977 तक लगातार 6 बार चुनाव जीते। 1980 में नेम पाल सिंह ने डिबाई में फिर से कांग्रेस की वापसी कराई। 1985 में कांग्रेस की हितेश कुमारी चुनाव जीती।

1991 में पहली बार जीती थी बीजेपी

कांग्रेस छोड़कर नेम पाल सिंह जनता दल में चले गए और 1989 में डिबाई सीट पर जीत दर्ज कराई। तो वहीं, 1991 में बीजेपी ने पहली बार चुनाव जीता और राम सिंह विधायक बने। बीजेपी की जीत का यह सिलसिला 1993 में भी जारी रहा। 1996 में राम सिंह ने पार्टी के विरष्ठ नेता कल्याण सिंह के लिए यह सीट छोड़ दी और डिबाई सीट से कल्याण सिंह चुनाव जीते। हालांकि, कल्याण सिंह डिबाई के साथ-साथ अलीगढ़ जिले की अतरौली से भी चुनाव लड़े और जीते थे। जिसके बाद उन्होंने डिबाई सीट से इस्तीफा दे दिया। 1997 के उपचुनाव में बीजेपी के राम सिंह फिर से चुनाव जीते।

इसके बाद कल्याण के बेटे राजवीर सिंह ने 2002 में राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से चुनाव जीता। हालांकि, 2007 में श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित ने पहली बार बसपा के टिकट पर चुनाव जीता। 2012 में भगवान शर्मा समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और सपा के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की। 2017 में अनीता लोध राजपूत ने यहां बीजेपी की वासपी कराई।

यह है इस सीट पर जातिगत समीकरण

वहीं, बात अगर डिबाई विधानसभा सीट के जातिगत समीकरणों की जाए तो यहां लोध राजपूत वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसके अलावा मुस्लिम और दलित वोटर भी प्रभावी भूमिका में रहते हैं। खास बात यह है कि यहां लोध राजपूत वोटर करीब 120871, जाटव 44918, बाल्मीकि 8913, खटीक 7913, प्रजापति 13916, कश्यप 12141, जाट 9153, पाल 12846, यादव 7913, ब्राह्मण 28913, ठाकुर 13913, वैश्य 13747, मुस्लिम 38003, अन्य 19934 हजार हैं। ऐसे में यहां पार्टियां इन्ही वर्गों से आने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाती है।

2017 में 3 लाख 33 हजार थी मतदाताओं की संख्या

2017 के चुनावों में डिबाई विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या कुल 3 लाख 33 हजार थी, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 78 हजार 304 थी। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 55 हजार 15 थी। 2017 के चुनाव की बात करें तो बीजेपी की अनीता लोधी को 1 लाख 11 हजार 807 मत प्राप्त हुए थे। उन्होंने सपा के हरीश लोधी को चुनाव हराया था। सपा प्रत्याशी को 40,177 वोट मिला था। जबकि तीसरे नंबर बसपा प्रत्याशी देवेंद्र भारद्वाज रहे थे।

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