अलीगढ़ का 'शूटआउट जोन' बना हरदुआगंज – क्या डीएम-एसएसपी सो रहे हैं?

अलीगढ़।
हरदुआगंज में इन दिनों असलहों के साये में पल रही "तमंचा गैंग" ने कानून-व्यवस्था को ठेंगा दिखा रखा है। बुढासी गांव में दो दिन पहले ट्रांसफार्मर लगाने के विवाद में हुई दिनदहाड़े फायरिंग और उसका आरोप एक ऐसे युवक पर लगना जो पहले ही तमंचा लहराते वीडियो में दिख चुका है — यह साफ बताता है कि पुलिस या तो डर रही है, या फिर बिक चुकी है।

ट्रांसफार्मर के नाम पर हुआ विवाद, गांव में चली गोली

मंगलवार को हरदुआगंज के बुढासी गांव में ट्रांसफार्मर लगाने को लेकर समुदाय विशेष के दो गुट आमने-सामने आ गए। पहले पक्ष के कुछ दबंगों ने बिजली विभाग की टीम से ही बदसलूकी की और काम रुकवा दिया। जब दूसरे पक्ष ने इसका विरोध किया, तो ये दबंग उनके घर तक जा पहुंचे। गाली-गलौज और मारपीट के बीच तमंचा चला और गोलियों की आवाज़ से गांव दहल गया।

फायरिंग करने वाला वही युवक, जो एक माह पहले लहराता दिखा था तमंचा

मामले में सबसे गंभीर बात यह है कि जिस युवक पर फायरिंग का आरोप लगा है, उसका एक वीडियो एक माह पहले वायरल हुआ था जिसमें वह महाराणा प्रताप जयंती की रैली के दौरान खुलेआम गली में तमंचा लहराता दिख रहा था। लोगों का कहना है कि यह वीडियो स्थानीय चौकी तक पहुंच चुका था, लेकिन "जेब गर्म" होते ही पुलिस ने आँखें मूंद लीं।

24 घंटे बाद भी नहीं दर्ज हुआ फायरिंग का मुकदमा

पुलिस ने इस पूरे मामले को सिर्फ शांतिभंग की कार्रवाई में समेट दिया। गोली चली, गांव में दहशत फैली, लेकिन न तो एफआईआर दर्ज हुई और न ही असलहा लेकर घूमते दबंगों पर कोई सख्त एक्शन। वीडियो सामने आने के 24 घंटे बाद भी संबंधित युवक पर कोई मुकदमा नहीं दर्ज किया गया।

चार और युवकों को असलहों संग पकड़ा गया, लेकिन थाने में सन्नाटा

बुधवार को चार युवकों – लखन, संजू, हिमांशु और विष्णु – को तमंचों के साथ हिरासत में लेने की खबर है। लेकिन पुलिस आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने से बच रही है। लगता है पुलिस रसूखदारों के दबाव में है।

थाने में 'परमानेंट दलालों' की मौज

हरदुआगंज थाने में असली सत्ता तो उन दलालों के हाथ में है जो अपराधियों को थाने से बाहर निकालने का जुगाड़ बना देते हैं। जैसे ही कोई अपराधी थाने पहुंचता है, वैसे ही ये दलाल भी अपनी "सेवा" में जुट जाते हैं। पुलिस अफसरों के कान में फुसफुसाकर अपराधियों को भोला-भाला साबित कर देते हैं और कुछ देर बाद वही दबंग पुलिस की जीप से उतरते हुए सीना तानकर बाहर निकलते हैं।

पुलिस को चाहिए बड़ी वारदात?

अब सवाल यह है कि आखिर हरदुआगंज पुलिस किस दिन का इंतजार कर रही है? क्या किसी की जान चली जाए, तब जाकर एफआईआर दर्ज होगी? क्या असलहों की ये नुमाइश यूं ही चलती रहेगी? या फिर पुलिस किसी बड़ी वारदात के बाद अपनी खानापूरी करेगी?


संपादकीय टिप्पणी:

तमंचे की नोंक पर सिस्टम को झुकाने की ये कोशिशें कानून के मुंह पर तमाचा हैं। अगर अब भी पुलिस नहीं चेती, तो आने वाले दिनों में हरदुआगंज बारूद के ढेर पर खड़ा नजर आएगा।

हर हफ्ते गोली चल रही है, किसी पर हमला हो रहा है, किसी की दुकान पर फायर झोंका जा रहा है – मगर प्रशासन का रवैया ऐसा है जैसे यह सब महज़ फिल्मी दृश्य हों।

नीचे दर्ज ये तारीखें और घटनाएं कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि हरदुआगंज और आसपास के गांवों में घटी हकीकत हैं, जिन्हें प्रशासन अगर अब भी हल्के में ले रहा है तो यह सीधे तौर पर जनता की जान से खिलवाड़ है:

  • 10 फरवरी – गांव कोंडरा: शेरगढ़ निवासी विवेक पुत्र हरप्रसाद को घेरकर फायरिंग की गई। गोली उसके पैर में लगी, वह बुरी तरह घायल हो गया।
  • 7 अप्रैल – कलाई: तेजवीर पर उस वक्त फायरिंग हुई जब वह खेत में भूसा ढो रहा था। किसान तक महफूज़ नहीं।
  • 14 अप्रैल – बुढासी रोड: उखलाना निवासी मोहित चौहान की बाइक पर कार सवार बदमाशों ने अंधाधुंध फायरिंग की।
  • 16 अप्रैल – कोंडरा चौराहा: रहसुपुर के प्रतीक जादौन पर सिर में पिस्टल से वार और फायरिंग का आरोप।
  • 17 अप्रैल – कलाई: डेरी व्यवसायी मनोज गुप्ता पर चौथ मांगने आए हथियारबंद बदमाशों ने दुकान से खींचकर पीटा।
  • 13 मई – कलाई: मनोज गुप्ता पर एक बार फिर फायरिंग, बाइक सवार हमलावर भाग गए।
  • 3 जून – हरदुआगंज: नेहरू जूनियर स्कूल के पास शिवम पुत्र गिरीश पर फायरिंग कर बाइक लूट ली गई।
  • 23 जून – सपेराभनपुर: सड़क किनारे खड़ी गाड़ी पर फायरिंग कर दहशत फैलाई गई।
  • 30 जून – भवनगढ़ी: बीना देवी के घर पर अज्ञात लोगों ने फायरिंग की।
  • 4 जुलाई – भवनगढ़ी: बीना देवी के घर में घुसकर नामजद बदमाशों ने जानलेवा हमला किया।

सवाल सीधा है – अब भी क्या किसी लाश का इंतज़ार है?

इन लगातार हो रही घटनाओं के बावजूद आज तक न कोई बड़ा अभियान, न गैंग का पर्दाफाश, न ही अपराधियों पर कोई सार्वजनिक कार्रवाई हुई है। पुलिस और प्रशासन की चुप्पी इन घटनाओं को बढ़ावा दे रही है।

हरदुआगंज, कलाई, बुढासी, भवनगढ़ी... अब कोई सुरक्षित नहीं। अगर यही हाल रहा तो अगली फायरिंग किसी स्कूल, मंदिर या बाजार में भी हो सकती है।

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