बड़ी खबर। जजों और मुख्यमंत्रियों से बोले प्रधानमंत्री मोदी : स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता दे कोर्ट, पुराने कानून को रद्द करे राज्य - पढ़ें 10 बातें

 

ब्यूरो डेस्क, समाचार दर्पण लाइव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के सीएम और विभिन्न हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की ज्वॉइंट कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन में कहा कि जिस तरह की न्यायिक प्रणाली को हम वर्ष 2047 में देखना चाहते हैं, उस पर सोचना और विचार करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शनिवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेते हुए कहा कि हमारे देश में आज भी हाई कोर्ट (HC) और सुप्रीम कोर्ट (SC) की सारी कार्यवाही अंग्रेजी में होती है।

हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, साथ ही यह भी कहा कि मुझे विश्वास है कि संविधान (Constitution) की दो धाराओं का संगम देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में देश की शीर्ष अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन दिए जाने की बात कही है, उन्होंने अपने संबोधन में कई अहम मुद्दों का भी जिक्र किया है।

प्रधानमंत्री के संबोधन की 10 बड़ी बातें…

  • हमारे देश में आज भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की सारी कार्यवाही अंग्रेजी में होती है, एक बड़ी आबादी को न्यायिक प्रक्रिया से लेकर फैसलों तक को समझना मुश्किल होता है, हमें व्यवस्था को आम जनता के लिए सरल बनाने की जरूरत है।

  • हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।

  • एक गंभीर विषय आम आदमी के लिए कानून की पेंचीदगियों का भी है। 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 कानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

  • आजकल कई देशों में लॉ यूनिवर्सिटीज में ब्लॉक-चैन्स, इलेक्ट्रॉनिक डिस्कवरी, साइबर सिक्योरिटी, रोबोटिक्स, एआई और बॉयोएथिक्स जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं। हमारे देश में भी लीगल एजुकेशन इन अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक हो, ये हमारी जिम्मेदारी है।

  • कुछ साल पहले डिजिटल ट्रांजेक्शन को हमारे देश के लिए असंभव माना जाता था, आज छोटे कस्बों यहां तक गांवों में भी डिजिटल ट्रांजेक्शन आम बात होने लगी है। पूरी दुनिया में पिछले साल जितने डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन अकेले भारत में ही हुए हैं।

  • भारत सरकार भी न्यायिक व्यवस्था में तकनीक की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है. उदाहरण के तौर पर, e-courts project को आज मिशन मोड में पूरा किया जा रहा है।

  • 25 साल बाद 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने न्यायिक व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएं कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए।

  • आजादी के इन 75 सालों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों की ही भूमिका और जिम्मेदारी को निरंतर स्पष्ट किया है. जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित ही हुआ है।

  • हमारे देश में जहां एक ओर न्यायपालिका की भूमिका संविधान संरक्षक की है तो वहीं विधानसभा नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है. मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।

  • राज्य के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है. मुझे खुशी है कि इस अवसर पर मुझे भी आप सभी के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला है।
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