डॉ. गरिमा गुप्ता केस: झूठी FIR का खेल, सिस्टम की नाकामी और एक पूर्व नौसेना अधिकारी का टूटा परिवार — अब उठी CBI जांच की मांग


रिपोर्टर: विनय कुमार श्रीवास्तव | विशेष रिपोर्ट | जनता बनाम सिस्टम

आगरा: यह कोई साधारण पारिवारिक विवाद नहीं, यह उस सिस्टम की सड़ांध की कहानी है जहाँ एक महिला डॉक्टर, उसके पति और उनके रसूख के दम पर एक पूर्व नौसेना अधिकारी व उसके परिवार को न सिर्फ मानसिक रूप से तबाह किया गया, बल्कि कानून को कठपुतली की तरह नचाया गया।

मित्रता का जाल, धोखे की बुनियाद

भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त एयरोनॉटिकल इंजीनियर महेश कुमार सिंह और उनकी पत्नी गौरी सिंह का जीवन तब तहस-नहस हो गया, जब उन्होंने आगरा की चर्चित समाजसेवी और 'शक्ति – ब्रज प्रांत' की उपाध्यक्ष डॉ. गरिमा गुप्ता और उनके पति डॉ. भूपेंद्र पर भरोसा किया।

इस विश्वास के बदले उन्हें मिला — आर्थिक शोषण, भावनात्मक धोखा, और सिस्टम का क्रूरतम चेहरा।



लाखों की ठगी, बीमारी की मजबूरी

डॉ. गरिमा और उनके पति ने ‘मित्रता’ की आड़ में महेश सिंह से लाखों रुपये ठगे। कभी मेडिकल पढ़ाई के नाम पर, तो कभी विदेश यात्रा और निजी खर्चों के लिए। महेश सिंह, जो उस समय खुद गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे, एक-एक करके अपनी पूंजी खोते चले गए।

सच्चाई तब उजागर हुई जब दिल टूटा

सितंबर 2021 में महेश सिंह को दिल का दौरा पड़ा और ICU में भर्ती हुए। उस दौरान गौरी सिंह ने जब उनके फोन की जांच की, तो हैरान करने वाली बातें सामने आईं — अश्लील संदेश, कॉल रिकॉर्डिंग, और डॉक्टर दंपत्ति की असलियत।

जब पत्नी ने सवाल उठाए, तो धमकियां मिलीं

गौरी सिंह के मुताबिक, गरिमा गुप्ता ने बार-बार उन्हें और उनकी नाबालिग बेटी को धमकाया। कभी खुद फोन करके, तो कभी अपनी नौकरानी के ज़रिए। प्रताड़ना की सीमा तब पार हुई जब गालियाँ दी गईं, चप्पल से मारने की कोशिश हुई, और 27 फरवरी 2022 को महिला थाने में झूठी FIR दर्ज करवा दी गई।

IMA की धमकी और मीडिया का दुरुपयोग

गौरी सिंह का दावा है कि डॉक्टर दंपति ने IMA (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) का दबाव बनाकर पुलिस को मजबूर किया। मीडिया को झूठी कहानियां परोसी गईं, सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री को टैग करते हुए मनगढ़ंत वीडियो वायरल किए।

परिणाम? बिना किसी मेडिकल रिपोर्ट, बिना साक्ष्य, बिना बयान — महेश सिंह और गौरी सिंह के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया।

पुलिस की मनमानी और अदालत की चुप्पी

डीसीपी सिटी सूरज राय ने खुद माना कि विवेचना में भारी गड़बड़ी हुई। दोबारा जांच के आदेश दिए गए, लेकिन नतीजा? वही ढाक के तीन पात।

अदालत में पांच अलग-अलग जजों ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया कि FIR पूरी तरह फर्जी थी। यहां तक कि वकील भी चुप रहे। क्या सिस्टम के इस मौन को सहमति माना जाए?

हाई कोर्ट में हुआ न्याय का मज़ाक

2024 में निचली अदालत ने महिला आरोपी को आरोपमुक्त किया, लेकिन रिवीजन में उस फैसले को खारिज कर दिया गया। चौंकाने वाली बात — डॉ. गरिमा गुप्ता न तो पेश हुईं, न उनका वकील, लेकिन फिर भी उन्हें हाई कोर्ट से राहत मिल गई!

क्या यह इंसाफ है या रसूख की जीत?

जनता के तीखे सवाल:

  • क्या "महिला" शब्द एक कवच बन चुका है, जिससे कोई भी मनमाने आरोप लगाकर निर्दोषों को जेल भिजवा दे?
  • जब FIR झूठी साबित हो चुकी है, तो केस अब भी क्यों चल रहा है?
  • क्या IMA, पुलिस और कोर्ट तीनों की मिलीभगत से न्याय की हत्या हो रही है?
  • एक देशभक्त पूर्व नौसेना अधिकारी और उनकी पत्नी कब तक गुनहगार बने रहेंगे?

जनता बनाम सिस्टम मंच की 4 बड़ी माँगें:

  1. इस पूरे प्रकरण की CBI जांच हो।
  2. IMA व डॉक्टर दंपति की साजिश में शामिल अधिकारियों पर साजिश की धाराओं में केस चले।
  3. गौरी सिंह द्वारा दर्ज कराई गई असली FIR को तुरंत स्वीकार किया जाए।
  4. डॉ. गरिमा गुप्ता की गिरफ्तारी कर फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाया जाए।

यह सिर्फ एक केस नहीं, पूरे सिस्टम पर सवाल है!

यह मामला देशभर की उन पीड़ित आवाज़ों का प्रतीक बन चुका है, जिन्हें सिस्टम ने कुचलने की कोशिश की। अब ये सवाल सिर्फ गौरी और महेश का नहीं, पूरे देश का है —

क्या भारत में सच्चाई की आवाज़ को दबा देने का नया फार्मूला बन गया है?
क्या इंसाफ सिर्फ रसूख वालों का अधिकार है?

अगर आज यह आवाज़ नहीं उठी, तो कल आपकी भी नहीं सुनी जाएगी।

#जनता_बनाम_सिस्टम
🖊️ रिपोर्टर: विनय कुमार श्रीवास्तव
📰 समाचार दर्पण लाइव विशेष अभियान रिपोर्ट

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