दलित राजनीति या दलित प्रयोगशाला? – भीम आर्मी का पोस्टमार्टम

📝विनय श्रीवास्तव | विशेष विश्लेषण | समाचार दर्पण लाइव

🔵 भूमिका:
2016 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से शुरू हुई भीम आर्मी की यात्रा ने दलित चेतना को नई दिशा दी। और इसी आंदोलन से निकला एक नाम – चंद्रशेखर 'रावण' – जो जल्द ही नायक, क्रांतिकारी, और अब सांसद बन गया।

लेकिन 2024 के बाद सवाल उठने लगे हैं –
क्या चंद्रशेखर सचमुच दलित हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं,
या वे बीजेपी के एजेंडे का रणनीतिक प्यादा बन चुके हैं?

🔴 भीम आर्मी से संसद तक: संघर्ष की कहानी
  • भीम आर्मी की स्थापना: शिक्षा के अधिकार और जातीय हिंसा के खिलाफ एक grassroots संगठन।
  • चंद्रशेखर को सहारनपुर हिंसा, जेल यात्रा और फिर बहुजन राजनीति के प्रतीक के रूप में देखा गया।
  • उन्होंने BSP और SP के खिलाफ स्वतंत्र आवाज उठाई, और 2020 में “आजाद समाज पार्टी” बनाई।
🟠 नगीना से जीत, लेकिन किसके दम पर?
2024 में चंद्रशेखर ने नगीना (SC रिजर्व) सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की – यह उनकी पहली संसद जीत थी।

लेकिन यहां एक तथ्य कचोटता है:
❝ समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार कमजोर क्यों पड़ा? ❞
❝ क्या चंद्रशेखर ने भाजपा को सीधी लड़ाई से राहत दिलाई? ❞

कई विश्लेषकों का मानना है:
"यह जीत दलित प्रतीक की नहीं, बल्कि विपक्षी वोटों के बंटवारे की जीत थी – और इसका परोक्ष लाभ भाजपा को मिला।"
🟡 “बीजेपी प्यादा” वाली थ्योरी: तथ्य या अफवाह?
विरोधियों का दावा:
  • चंद्रशेखर कभी खुलकर भाजपा का विरोध नहीं करते।
  • उनकी रैलियों में भाजपा के खिलाफ उतना आक्रोश नहीं होता, जितना सपा, बसपा या कांग्रेस के खिलाफ।
सोशल मीडिया पर ‘#दलितों_का_एजेंट’ और ‘#बीजेपी_का_प्लान_B’ जैसे हैशटैग ट्रेंड होते हैं।
कुछ अंदरूनी रिपोर्ट्स में दावा है कि दलित वोटों को विभाजित करने के लिए BJP ने जानबूझकर चंद्रशेखर को फंडिंग या बढ़ावा दिया।
(साक्ष्य सार्वजनिक नहीं हैं, लेकिन अटकलें तेज हैं।)

🟢 चंद्रशेखर का पक्ष:
चंद्रशेखर खुद को आज भी “दलितों की असली आवाज” कहते हैं। उनका कहना है:
“मैं न भाजपा का हूं, न किसी और का। मैं सिर्फ संविधान का हूं। जो दलित विरोध करेगा, मैं उसके खिलाफ खड़ा रहूंगा।”
⚫ जनता की अदालत:
क्या चंद्रशेखर 'रावण' अब भी जनता का प्रतिनिधि है?
या फिर वह एक ऐसा प्यादा है जिसे सत्ता ने चालाकी से मोहरे की तरह इस्तेमाल किया?

📣 अंतिम पंक्तियां:
“दलित राजनीति का नया चक्रव्यूह शुरू हो चुका है।
"दलित कार्ड या दलित न्याय?" – जब 'विक्टिम नैरेटिव' ही फर्जी निकला”


🔍 एक ज़मीनी पड़ताल: बूलगढ़ी, जालौर, आगरा

1️⃣ बूलगढ़ी, हाथरस (2020)
सरकारी नैरेटिव: मनीषा नाम की एक दलित युवती के साथ सवर्ण लड़कों द्वारा गैंगरेप और हत्या।
पड़ताल: मनीषा और संदीप सिंह सिसौदिया के बीच सहमति से संबंध थे। “गैंगरेप” की कहानी राजनीतिक और मीडिया दबाव में गढ़ी गई।
अदालत ने तीन निर्दोष युवकों को बाइज्जत बरी किया।
भीम आर्मी की भूमिका: चंद्रशेखर ने इसे ‘दलित बहन के साथ अन्याय’ का चेहरा बनाया, जबकि असल केस की सच्चाई से उनका कोई लेना-देना नहीं था।

2️⃣ जालौर मटका कांड (2022)
सरकारी नैरेटिव: एक दलित बच्चे को “मटका छूने” के लिए स्कूल में शिक्षक ने पीट-पीटकर मार डाला।
पड़ताल: मटका जैसी कोई वस्तु मौके पर नहीं मिली। मौत दुःखद थी, लेकिन उसे जातीय उन्माद भड़काने में प्रयोग किया गया।
भीम आर्मी की भूमिका: "ब्राह्मण अत्याचार" का नैरेटिव गढ़ा गया जबकि ग्राउंड फैक्ट्स नदारद थे।

3️⃣ संगीता राजावत आत्मदाह केस, आगरा (2023)
सरकारी नैरेटिव: दलित महिला का आत्मदाह – जातीय उत्पीड़न का मामला।
पड़ताल: संगीता राजावत SC/ST एक्ट के झूठे इस्तेमाल, सामाजिक दबाव और फर्जी जाति पहचान से परेशान थीं।
भीम आर्मी की भूमिका: बच्चों के झगड़े को जातीय रंग देकर केस दर्ज करवाया गया। संगीता का परिवार 'सक्सेना' नाम से भ्रामक रूप में पेश हुआ।

📌 निष्कर्ष:
“भीम आर्मी और चंद्रशेखर रावण की छवि ‘दलित रक्षक’ की हो सकती है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि कई मामलों में उन्होंने दलित न्याय नहीं, दलित राजनीति को साधा।”

🧩 प्रस्तावित टाइटल्स:
  • “दलित नैरेटिव्स की सच्चाई: जब न्याय की जगह राजनीति हुई”
  • “रावण का पर्दाफाश: फर्जी केसों पर असली एजेंडा”
  • “बीजेपी का प्यादा रावण कैसे?”
❓ 1. जब बाकी विरोधी हिटलरशाही का शिकार हुए, रावण क्यों बचा रहा?
भीम आर्मी के आंदोलनकारी तरीकों पर न कोई NSA, न UAPA।
वहीं किसान आंदोलन, CAA-NRC आंदोलन, कांग्रेस यात्राओं पर दमन हुआ।

रावण अपवाद क्यों?
“क्या वह नियंत्रित विरोध है, एक ऐसा एजेंडा जिसे सत्ता ने विपक्ष को तोड़ने के लिए बनाया?”

⚖️ 2. NSA हटाना – क्यों और कैसे?
2017 में योगी सरकार ने NSA लगाया, पर चुपचाप हटाया भी।
“अगर वह राष्ट्र सुरक्षा के लिए खतरा था, तो फिर कानून क्यों हटाया गया?”

🚨 3. चंद्रशेखर रावण पर पांच युवतियों के आरोप
सोशल मीडिया व स्थानीय रिपोर्टों में शोषण, उत्पीड़न, मानसिक दबाव के आरोप हैं।
न FIR, न CBI जांच, न मीडिया ट्रायल।
“क्या रावण सत्ता के लिए अछूत नहीं, बल्कि 'संरक्षित' हैं?”

📌 निष्कर्ष:
“जब उत्पात करने वाले को संरक्षण मिले, जब आपराधिक आरोपों पर चुप्पी साध ली जाए, जब सड़कों पर भड़काने वाले पर रासुका हट जाए — तब समझो कि वह विरोधी नहीं, ‘नियोजित मोहरा’ है।”

📣 वैकल्पिक टाइटल सुझाव:
  • “दलित रावण या दलाल प्यादा? – जनता बनाम सिस्टम की खुली किताब”
  • “NSA हटाना, केस दबाना – सत्ता का खेल या जनहित का धोखा?”
  • “जब विरोध भी प्रायोजित हो: आज़ाद का असली एजेंडा”
  • “जनता बनाम सिस्टम: जब न्याय की आड़ में साजिश रची गई – लेकिन इसमें अर्जुन कौन है और शकुनी कौन – यह तय करना अब जनता का काम है।”
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