"कभी-कभी लोग मुस्कुरा कर भी रोते हैं... और किसी को पता भी नहीं चलता कि वो खो चुके हैं…"
04088 पटना सुपरफास्ट एक्सप्रेस में 26 जून की सुबह एक मुसाफ़िर चुपचाप गुम हो गया। सीट नंबर तो थी, पर मुसाफ़िर नहीं... नाम था अमित कुमार उर्फ़ ऋषि श्रीवास्तव। उम्र बस इतनी कि अभी हौसलों को उड़ान भरनी थी, लेकिन ज़िंदगी की पटरी ने अचानक मोड़ बदल लिया — ऐसा मोड़, जहां से कोई वापसी नहीं।
“गाड़ी चली, लेकिन अमित नहीं लौटा…”
दिल्ली से कानपुर के सफर पर निकले अमित अपनी पत्नी अंजली के साथ थे। खुर्जा स्टेशन से महज 20 मिनट पहले उन्होंने अंजली को पानी लाने भेजा, और खुद—कहीं खो गए। जब अंजली लौटीं, तो अमित नज़र नहीं आए। सीट पर एक अजीब सी ख़ामोशी बैठी थी, जैसे कुछ टूट गया हो।अंजली घबराईं, ट्रेन से उतरीं और स्थानीय सिपाही अंकित तोमर से मदद मांगी। तुरंत कार्रवाई हुई, अंजली दोबारा ट्रेन में चढ़ाईं गईं, पर उस डिब्बे में अमित नाम की कहानी अब अधूरी रह गई।
कुछ दिन पहले की भी एक अधूरी वापसी…
21 जून को भी अमित और अंजली एक बार पहले दिल्ली से पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन (मुगलसराय) गए थे। लेकिन वहां पहुंचने के बाद घरवालों के दबाव में लौटना पड़ा। उस वापसी के बाद घर की चारदीवारी में अमित के लिए तानों की बारिश और अपमान की आँधी रुकी नहीं।सास रेखा और अन्य परिजनों की कड़वी बातें अमित के ज़हन में इस कदर बैठ गईं कि वह टूटने लगे। मानसिक तनाव गहराता गया, लेकिन किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि एक इंसान भीतर से कितनी आवाज़ें मार रहा है।
ये आत्महत्या नहीं, एक ‘सोशल मर्डर’ है…
यह केवल एक दुखद ‘मामला’ नहीं है। यह उस सामाजिक सिस्टम की विफलता है, जो मानसिक स्वास्थ्य को मज़ाक समझता है। यह उस परिवार की बेरुख़ी का आईना है, जहां ताने, अपमान और "लोग क्या कहेंगे" के नीचे इंसानियत दम तोड़ देती है।रेलवे पुलिस, जीआरपी, आरपीएफ और सोशल मीडिया की मदद से सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है:
"अगर अमित मिल भी गया… क्या वो वही अमित होगा जो गया था?"
किसी की चुप्पी मत पढ़ो, उससे बात करो…
अगर आप या आपका कोई करीबी तनाव, अवसाद या घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, तो चुप मत रहिए। मदद लीजिए। बात कीजिए। कभी-कभी एक कॉल किसी की जान बचा सकती है।किरण हेल्पलाइन: 1800-599-0019
यह खबर नहीं, एक चीख है – जिसे सुनना होगा, समझना होगा, और बदलना होगा।
क्योंकि हर अमित की तलाश सिर्फ़ ट्रेन में नहीं, समाज की सोच में भी होनी चाहिए…