इस घटना ने एक बार फिर निजी अस्पतालों में मुनाफाखोरी और लापरवाही की पोल खोल दी है। भगवान दास हॉस्पिटल पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई अब तक शून्य है। सवाल ये है कि जब मरीज की हालत बिगड़ रही थी, तब तुरंत रेफर क्यों नहीं किया गया?
हरदुआगंज के भगवान दास हॉस्पिटल में गुरुवार को उस वक्त बवाल मच गया जब एक मरीज की इलाज के दौरान मौत हो गई। मृतक के स्वजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा काटा। मामला रामघाट रोड स्थित बगीची क्षेत्र का है, जहां पुलिस को मौके पर पहुंचकर लोगों को समझाना पड़ा।
मृतक की पहचान साधू-आश्रम क्षेत्र के गांव चौगानपुर निवासी 55 वर्षीय रामसिंह बघेल पुत्र तुलसीराम के रूप में हुई है। रामसिंह को पेट दर्द की शिकायत पर मंगलवार को भगवान दास हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। परिजनों के अनुसार, इलाज के दौरान जब रामसिंह की तबियत बिगड़ने लगी तो उन्होंने मरीज को रेफर करने की मांग की, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने ‘जल्द ठीक हो जाएगा’ कहकर आश्वस्त कर दिया।
लेकिन गुरुवार शाम करीब पांच बजे, जब स्थिति और बिगड़ गई, तब अचानक रेफर पर्चा थमाकर 10 हजार रुपये जमा करने को कहा गया और ऑक्सीजन युक्त एंबुलेंस बुलवा दी गई। आरोप है कि जब मरीज की हालत बेहद नाजुक हो गई थी, उसी समय उसे अस्पताल से बाहर भेजा जा रहा था। रामसिंह ने एंबुलेंस में बैठने से पहले ही दम तोड़ दिया।
स्वजनों का कहना है कि रामसिंह की मौत के बाद भी उसे जबरन एंबुलेंस में बैठाने का प्रयास किया गया। इस पर परिजनों का गुस्सा फूट पड़ा और एंबुलेंस चालक से धक्का-मुक्की हो गई। लोगों ने अस्पताल प्रबंधन पर इलाज में घोर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर नारेबाजी और हंगामा किया।
सूचना मिलते ही एसओ धीरज कुमार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और स्थिति को नियंत्रित किया। एसओ ने बताया कि मृतक के परिजनों ने पोस्टमार्टम से इनकार करते हुए लिखित में सूचना दी और शव लेकर चले गए। मामले में अभी तक कोई तहरीर नहीं दी गई है।
रामसिंह बघेल मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। उनके पांच बच्चे हैं—तीन बेटियां और दो बेटे। इनमें एक बेटी की शादी हो चुकी है, जबकि बाकी सभी बच्चे अविवाहित हैं। रामसिंह की मौत के बाद परिवार में कोहराम मचा है और हर आंख नम है।
इस घटना ने एक बार फिर निजी अस्पतालों में मुनाफाखोरी और लापरवाही की पोल खोल दी है। भगवान दास हॉस्पिटल पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई अब तक शून्य है। सवाल ये है कि जब मरीज की हालत बिगड़ रही थी, तब तुरंत रेफर क्यों नहीं किया गया?