थाना पुलिस टॉर्च लेकर खोज रही होगी “कहाँ है जुआ, कहाँ है सट्टा?”, और इधर मंडी की कैंटीन से लेकर गाँव-देहात तक जुए के ठिकाने चमक रहे हैं जैसे दीवाली की झालर। काली मंदिर से जारौठी साधुआश्रम तक फड़ ही फड़—हर रात हजारों-लाखों का खेल, और मजे की बात ये कि पुलिस ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे सब कुछ चाँद पर हो रहा हो।
गाँव आज़ादनगर से मोहल्ला अहीरपाड़ा तक गांजा खप रहा है, सफेद पाउडर का धंधा भी धड़ल्ले से, और हरदुआगंज-कलाई का कुख्यात जुआ-ग्रुप खुलेआम ताल ठोंक रहा है।
अब सुनो सबसे बड़ा तमाशा—
पूरे इलाके में 25 लाख के जुए की गूंज है।
हरिद्वार से शुरू हुआ खेल, हरदुआगंज में आकर जुआ का बम फोड़ गया। नगदी, गाड़ियाँ, सोना—सब दांव पर! पहले तो हरदुआगंज के "शर्मा जी" (जो सोने से लदे घूमते थे) ने हरिद्वार वाले अखाड़े में सात लाख (एक कार) जीत ली। लेकिन जब खेल तालानगरी के होटल में लगा तो शर्मा जी की किस्मत पलट गई—सोना, पैसा सब हवा!
फिर क्या—आरोप लगा कि सामने वाले ग्रुप ने हिडन चिप लगाकर शर्मा जी को पटखनी दी है।
पंचायत बैठी, कुछ रकम माफ हुई, कुछ उधारी बची, लेकिन शर्मा जी की इज्जत का दिवाला निकल गया।
पूरा कस्बा हँस रहा है, चर्चा कर रहा है और पुलिस? पुलिस को तो जैसे सांप सूंघ गया हो—जो कान और आँख बंद किए है।
ये पूरा जुआ-कांड सिर्फ गली-मोहल्ले की गपशप नहीं, बल्कि थाने की साख पर एक धब्बा जैसा है।