कासगंज में इंसाफ की लाश — रेप पीड़िता का परिवार पलायन को मजबूर!




कासगंज (उत्तर प्रदेश): मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे फिर सवालों के घेरे में हैं!
कासगंज जिले के मामूर गंज गांव से आई ये खबर प्रशासन की रीढ़ हिला देने वाली है — जहां एक पिता अपनी बेटी के साथ हुए ‘दुष्कर्म और मारपीट’ के इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है, वहीं पुलिस ने उल्टा उसी पीड़ित परिवार पर फर्जी मुकदमा ठोंक दिया है!
 बेटी के साथ दरिंदगी, वीडियो भी आया सामने!

मामूर गंज निवासी रामपाल पुत्र शंकर लाल का कहना है कि गांव के दबंग — मनोज, नन्दी, गुंजन, महीपाल और अन्य — पिछले छह महीने से उनके परिवार को आतंकित कर रहे थे।
3 अगस्त 2025 को इन दबंगों ने घर पर धावा बोला, रामपाल की बेटी राधिका (काल्पनिक नाम) को बालों से घसीटा, उसके साथ दुष्कर्म और बर्बर मारपीट की गई।
इस पूरी घटना का वीडियो तक वायरल हुआ, लेकिन पुलिस की आंखों पर जैसे पट्टी बंधी रही।

पुलिस की पहली चाल: FIR तो हुई, पर “दुष्कर्म” गायब!

6 अगस्त 2025 को पुलिस ने FIR दर्ज की, लेकिन हैरानी की बात ये कि “दुष्कर्म” की धारा लगाना भूल गई!
माने, अपराधियों को बचाने की पटकथा थाने में ही लिखी गई।

18 अगस्त 2025 को जब राधिका ने अदालत में बयान दिया, तो उसने साफ कहा — “मेरे साथ दुष्कर्म हुआ है।”
अब सवाल ये है कि फिर पुलिस ने FIR में वो धारा क्यों नहीं जोड़ी?

पीड़ित परिवार का कहना है कि अब पुलिस लगातार उन पर “समझौते” का दबाव बना रही है।
“बिटिया का नाम बदनाम हो जाएगा, मामला रफा-दफा कर दो” — यही समझाइश पुलिस की तरफ से दी जा रही है।

इंसाफ मांगने की सजा: फर्जी मुकदमा ठोंक दिया!

जब रामपाल ने न्याय के लिए आवाज उठाई, तो 5 अक्टूबर 2025 को पुलिस ने उन्हीं पर एक फर्जी केस  दर्ज कर दिया!
सबसे चौंकाने वाली बात — जिस दिन की घटना पुलिस ने कागज़ पर दिखाई, उस दिन रामपाल घटना स्थल पर थे ही नहीं!
यानि जो व्यक्ति मौजूद ही नहीं था, उसे आरोपी बना दिया गया — आरोप है ये सब पुलिस की मिलीभगत से हुआ है.

“112 के सामने पीटा गया, केस हमारे खिलाफ!”

रामपाल का दावा है कि जिस दिन फर्जी केस लिखा गया, उसी दिन दबंगों ने उन्हें, उनकी पत्नी, बेटे और भतीजे को 112 पुलिस टीम के सामने पीटा!
पुलिस ने हमलावरों को पकड़ने के बजाय, पीड़ितों को ही अपराधी बना डाला!

अब गांव छोड़ने की चेतावनी

डीआईजी अलीगढ़ को लिखे पत्र में रामपाल ने लिखा —
“मुझे, मेरी बेटी और परिवार को इन दबंगों और पुलिस की मिलीभगत से बचाया जाए।
अगर न्याय नहीं मिला, तो हम इस गांव से पलायन करने को मजबूर होंगे।”

जनता का सवाल — ये कैसा ‘उत्तम प्रदेश’?

जहां दुष्कर्म पीड़िता को इंसाफ नहीं, बल्कि फर्जी मुकदमे और धमकियां मिलती हैं,
जहां वीडियो सबूत होने के बावजूद आरोपी खुले घूम रहे हैं,
और जहां पुलिस, अपराधियों की एजेंट बनकर पीड़ितों को डराती है 
क्या यही है वो “जीरो टॉलरेंस” जिसका दावा योगी सरकार करती है?
कासगंज की ये कहानी किसी एक परिवार की नहीं — ये उस सिस्टम की पोल खोलती है, जहां ‘बिटिया बचाओ’ के नारे कागज़ पर हैं, और असल में पुलिस अपराधियों की ढाल बन चुकी है।
अब सवाल सिर्फ एक — क्या प्रशासन इस बार जागेगा, या फिर एक और बेटी की चीखें फाइलों में दब जाएंगी?
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