उत्तर प्रदेश के कासगंज से आई खबर ने न केवल कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई हैं, बल्कि देश की हर उस बेटी के सीने में खंजर घोंप दिया है, जिसे "बेटी बचाओ" के खोखले नारे सुनाए जाते हैं। एक महीने पहले, 10 अप्रैल 2025 को, हजारा नहर के किनारे एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ हुए दिल दहलाने वाले सामूहिक दुष्कर्म के मामले में, मुख्य आरोपियों को जमानत मिल गई है। जी हां, वही दरिंदे जिन्होंने एक मंगेतर के सामने उसकी नाबालिग मंगेतर को हवस का शिकार बनाया, उसका वीडियो बनाया और फिर धमकी देकर पैसे भी ऐंठे, आज खुले घूम रहे हैं। इस फैसले ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत में न्याय अब रसूखदारों की कठपुतली बन गया है?
क्रूरता की इंतहा, फिर भी जमानत?
मामला किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाला है। कासगंज के हजारा नहर क्षेत्र में पिकनिक मनाने गए एक जोड़े को 8-10 दरिंदों ने घेर लिया। मंगेतर को बेरहमी से पीटा गया, उससे नकदी और गहने लूटे गए, और फिर नाबालिग को पास के एक सुनसान कमरे में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इन राक्षसों ने इस घिनौने कृत्य का वीडियो भी बनाया, पीड़िता को जान से मारने की धमकी दी, और 50,000 रुपये की रंगदारी भी मांगी। पीड़िता के बयान, मेडिकल सबूत, और आरोपियों के मोबाइल से बरामद वीडियो जैसे ठोस सबूतों के बावजूद, अब मुख्य आरोपी, जिसमें कथित भाजपा नेता अखिलेश प्रताप सिंह उर्फ एपीएस उर्फ गब्बर भी शामिल है, समेत पांच दरिंदों को जमानत मिल चुकी है।
सत्ता का खेल, या न्याय का पतन?
अखिलेश प्रताप सिंह का भाजपा के बड़े नेताओं से कथित संबंध इस मामले को और भी संदिग्ध बना देता है। क्या यह सत्ता का सीधा खेल है, जिसने जांच को कमजोर कर दिया और अपराधियों को बेलगाम छोड़ दिया? सोशल मीडिया पर जनता का आक्रोश उबल पड़ा है। X (पूर्व ट्विटर) पर #JusticeForKasganjVictim ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग सवाल उठा रहे हैं कि "नाबालिग के साथ गैंगरेप, लूट, धमकी, और वीडियो बनाने के बाद भी जमानत? यह कानून नहीं, सत्ता का खेल है!" एक अन्य यूजर ने लिखा, "बेटी बचाओ का नारा अब खोखला है। सत्ता के गलियारों में अपराधी सुरक्षित हैं, लेकिन पीड़ित डर में जी रहे हैं।"
पुलिस और सरकार की चुप्पी: एक दर्दनाक सच
शुरुआत में, कासगंज पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। यूपी महिला आयोग ने भी कठोर कार्रवाई का भरोसा दिया था। लेकिन जमानत के बाद पुलिस और प्रशासन खामोश हैं। क्या उन्हें जनता के आक्रोश की परवाह नहीं? क्या उन्हें पीड़िता के भविष्य की कोई चिंता नहीं? उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद का ऐलान किया है, लेकिन क्या यह न्याय की जगह ले सकता है? क्या यह राशि उन चोटों को भर सकती है जो पीड़िता ने झेली हैं, और उन धमकियों के डर को खत्म कर सकती है जो उसे अब और अधिक सताएंगी?
सिस्टम पर उठते ये सवाल चीख रहे हैं, प्रशासन कब जागेगा?
- जमानत का आधार क्या है? इतने संगीन मामले में, जहां सबूतों की कोई कमी नहीं, जमानत किस आधार पर मिली?
- राजनीतिक दबाव? क्या अखिलेश प्रताप सिंह के कथित राजनीतिक संबंधों ने न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित किया है?
- पीड़िता का भविष्य क्या है? आरोपियों की रिहाई के बाद पीड़िता और उसके परिवार की सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा? क्या वे अब भी डर के साए में जिएंगे?
यह सिर्फ एक बलात्कार का मामला नहीं है, यह न्याय प्रणाली, शासन और समाज पर एक गंभीर सवाल है। यह मामला चीख-चीख कर पूछ रहा है, "क्या भारत में आम आदमी और खास आदमी के लिए अलग-अलग कानून हैं?"