न ये संत, न वो बेगुनाह—हरदुआगंज में मचाई हिंसा ने खोल दी दोनों तरफ की पोल!

 


"गोकशी अगर जुर्म है, तो भीड़ की हिंसा भी कहां सही?"

अलीगढ़/हरदुआगंज: शनिवार सुबह अलीगढ़ के हरदुआगंज इलाके में मानो एक जलता हुआ मोर्चा खुल गया!

गाय के मांस की सूचना पर शुरू हुई घेराबंदी, देखते ही देखते एक भीड़ में बदल गई – गाड़ी रोकी, युवक पीटे गए, सड़क पर मांस फेंका गया, आगजनी हुई और “पुलिस मुर्दाबाद” के नारे गूंज उठे।

घटना अलहदादपुर गांव के पास साधू आश्रम रोड पर घटी, जहां एक मैक्स लोडर में कथित प्रतिबंधित पशु मांस को लेकर अतरौली जा रहे चार युवकों को हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने रोका।

गाड़ी में मांस देखा, फिर पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया। मांस को सड़क पर फेंककर दो घंटे तक जाम लगाया गया।

पुलिस मौके पर पहुंची तो भीड़ ने न सिर्फ घायल युवकों को फिर से पीटा, बल्कि PRV गाड़ी के शीशे तोड़ दिए और पुलिसकर्मियों से धक्कामुक्की की।

“तीन लाख देकर पुलिस से मिलकर करते हैं कारोबार” – पूछताछ में सामने आया दावा

विजय बजरंगी नामक युवक ने आरोप लगाया है कि उसने और अन्य कार्यकर्ताओं ने गाय के मांस की सूचना पर गाड़ी का पीछा किया, ड्राइवर ने उन्हें कुचलने की कोशिश की, जिससे बाइक गिर गई, गाड़ी भी पलट गई, और उसमें सात प्रतिबंधित पशु कटे मिले।

पुछताछ में आरोपियों ने कथित रूप से तीन लाख देकर पुलिस की मिलीभगत से मीट ले जाने की बात स्वीकार की, ऐसा विजय का दावा है।

15 दिन पहले भी यही गाड़ी पकड़ी गई थी, लेकिन पुलिस ने “भैंस का मांस” बताकर छोड़ दिया था – यह आरोप फिर दोहराया गया।

भीड़ का हंगामा: ‘गौहत्यारों को मार दो!’ – पुलिस को खदेड़ा गया

जैसे ही पुलिस चारों घायल युवकों को अभिरक्षा में लेने लगी, भीड़ और भड़क गई। पुलिस को धकेल दिया गया,

“गौहत्यारों को गोली मारो”, “पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद” जैसे नारे लगे। भीड़ ने पुलिस पर आरोप लगाया कि वह पैसे लेकर गोकशी करने वालों को छोड़ देती है।

PRV गाड़ी पर हमला, पुलिस पर हमले की कोशिश

घटना के वक्त PRV गाड़ी के चालक संदीप कुमार और हेड कांस्टेबल सुखचैन ने युवकों को भीड़ से बचाने की कोशिश की। भीड़ ने गाड़ी का शीशा तोड़ दिया, पुलिसकर्मियों से बदसलूकी की, और घायलों को जबरन फिर से भीड़ के हवाले कर दिया।

चारों घायल, एक की हालत नाजुक – दोनों पक्षों पर मुकदमे, जांच में गाय के मांस की पुष्टि अभी बाकी

घायलों की पहचान:

  • कदीम (32) पुत्र मुन्ना,
  • अकील (35) पुत्र सलीम,
  • अरबाज (38) पुत्र इस्लाम,
  • अकील पुत्र इब्राहीम – सभी अतरौली के रहने वाले हैं

इनमें एक की हालत गंभीर है।

घायल पक्ष (मीट लोडर सवार) की तहरीर पर दर्ज मुकदमे में नामजद आरोपियों के नाम, जिन पर चौथ मांगने, मारपीट, लूट और जान से मारने की नीयत से हमला करने के गंभीर आरोप लगे हैं:

नामजद आरोपी (13 लोग):

  • रामकुमार आर्य – विहिप नेता
  • अर्जुन सिंह उर्फ भोलू – अलहदादपुर के पूर्व प्रधान
  • गिरीश कुमार – शेखुपुर के वर्तमान प्रधान
  • चेतन लोधी
  • शिवम हिंदू
  • रविंद्र उर्फ बंटी
  • लवकुश
  • अनुज 
  • भूरा
  • विजय
  • अंकित (महमूदपुर) 
  • राना (अलहदादपुर)
  • विजय कुमार गुप्ता (कलाई)
  • एक अन्य नामजद, जिसकी पुष्टि नहीं हुई

इनके अलावा 25 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।

घायलों की ओर से यह तहरीर अकील के पिता सलीम खां द्वारा दी गई, जिसमें 50 हजार रुपये की चौथ मांगने, मारपीट, मोबाइल और रुपये लूटने तथा पूर्व में भी दबाव डालने के आरोप लगाए गए हैं।

अब तक

विजय बजरंगी की तहरीर पर मैक्स सवारों पर गोकशी निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज, वहीं घायलों की तरफ से 13 नामजद और 25 अज्ञात लोगों पर हत्या प्रयास, मारपीट, लूट, चौथ मांगने के आरोप में केस दर्ज हो चुका है।

अब सवाल बड़ा है: मांस का सच क्या है, और कानून की हद कहां है?

गाड़ी से बरामद मांस फॉरेंसिक लैब भेजा गया है, ताकि पुष्टि हो सके कि वो गाय का था या किसी और जानवर का लेकिन इस घटना ने यूपी में भीड़ की हिंसा, पुलिस की भूमिका और कानून की गिरती साख पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

अगर मांस गाय का नहीं निकला – तो क्या भीड़ पर हत्या का प्रयास, लूट, दंगा और आगजनी के तहत मुकदमा चलेगा?

अगर मांस गाय का था, तो पुलिस की मिलीभगत को लेकर क्या कदम उठाए जाएंगे?

अधिवक्ता त्रिवेंद्र कुमार शर्मा के अनुसार, अगर मांस गोवंश का न पाया गया, तो भीड़ द्वारा हमला करने वालों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो सकता है, जिनमें हत्या की कोशिश, दंगा, आगजनी, गैरकानूनी रूप से बंधक बनाना और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना शामिल हैं।

त्रिवेंद्र कुमार शर्मा ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश में गोवंश की हत्या प्रतिबंधित है।

"उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955" के अनुसार:

गाय, बछड़ा, बैल, सांड आदि का वध पूरी तरह प्रतिबंधित है। दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की सजा और 3 लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। संशोधित कानून के तहत गोवंश का परिवहन, भंडारण, बिक्री या अवशेष रखना भी दंडनीय है।

अलीगढ़ में पहले भी हो चुकी हैं गोकशी और भीड़ हिंसा से जुड़ी घटनाएं

1. 2018 – थाना कोतवाली क्षेत्र में गोकशी के संदेह में दो युवकों की पिटाई हुई थी। बाद में मांस की जांच में पुष्टि नहीं हो सकी।

2. 2021 – टप्पल क्षेत्र में पुलिस ने गोकशी की सूचना पर छापा मारा, लेकिन भीड़ ने पुलिस टीम पर ही हमला कर दिया। कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे।

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