हरदुआगंज : लखन यादव से लेकर बाग वाली घेराबंदी, लूट, चोरी और एक ही घर पर दो-दो बार फायरिंग — ‘समाचार दर्पण लाइव’ हर बार चेताता रहा, लेकिन जब तक सिस्टम जागता... तब तक सोनू चौधरी को सरेआम मार दिया गया



अब वक्त है जब पुलिस को अपनी फाइल खोलने से पहले ‘समाचार दर्पण लाइव’ की हेडलाइन पढ़नी चाहिए — शायद अगली लाश रुक जाए!

तालानगरी की सड़कों पर शुक्रवार सुबह एक गाड़ी दौड़ रही थी, गाड़ी के भीतर बैठा था एक भाजपा नेता — सोनू चौधरी। कुछ ही मिनट बाद वही गाड़ी गोलियों से छलनी हो गई और गूंज उठी खौफ की आवाज़ें — 10 गोलियां, सीना चीरती, जबड़ा तोड़ती, माथा फाड़ती। जिस किसी ने देखा, उसकी रूह कांप गई।

सोनू चौधरी कोई मामूली आदमी नहीं थे — सांसद सतीश गौतम के करीबी, भाजपा हरदुआगंज मंडल के पूर्व उपाध्यक्ष, प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे एक मजबूत दावेदार। लेकिन कातिलों को न पार्टी का डर था, न कानून का लिहाज़।



हत्या की पटकथा पहले से तैयार थी

कार स्टार्ट थी, एसी चल रहा था, मतलब सोनू चौधरी ने खुद ही किसी को गाड़ी में बैठाया था। शक उन लोगों पर है जो नाम से तो 'परिचित' थे, लेकिन नीयत में ज़हर था। बाइक सवार दो हमलावरों ने कार को रोका, एक ने भीतर जाकर बातचीत की, दूसरे ने कनपटी पर गोली मारी — फिर दोनों ने मिलकर ताबड़तोड़ 10 गोलियां दागीं।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट चीख-चीख कर बता रही है — “दाईं कनपटी, जबड़ा, गाल, कंधा, पीठ, गर्दन, सिर और माथे पर गोलियां मारी गईं। गोली मुँह से पार हो गई, ब्रेन फट गया।” ऐसे मारा गया जैसे कोई दुश्मन नहीं, किसी की जली हुई आत्मा बदला ले रही हो।

10 साल पहले बड़े भाई की भी ऐसे ही हत्या — पर कोई नहीं सजा पाया कातिल

2015 में सोनू के बड़े भाई राजेश कुमार की भी गोली मारकर हत्या हुई थी। नामज़द तीन आरोपियों में से दो की सड़क हादसे में संदिग्ध मौत हो गई और तीसरा भी अब हवा हो गया। पुलिस की फाइलों में केस बंद, इंसाफ अधूरा।

 क्या अब भी तीसरे भाई की हत्या को भी "आपसी रंजिश" का तमगा देकर फाइल बंद हो जाएगी?

तालानगरी में डर का नया नाम: पुलिस की नाक के नीचे अपराधियों की परेड

पिछले कुछ महीनों में हरदुआगंज में 10 से ज़्यादा फायरिंग और हमले की घटनाएं हो चुकी हैं।

  • 10 फरवरी: कोडरा में फायरिंग
  • 14 अप्रैल: बाइक सवारों की फायरिंग
  • 3 जून: शिवम पर हमला
  • 30 जून और 4 जुलाई: बीना देवी के घर में ताबड़तोड़ गोलियां

सवाल ये है कि इतने हमलों के बाद भी पुलिस क्या कर रही है? गोलियों की आवाज़ें पुलिस थानों तक नहीं पहुंचतीं क्या?

 जनता पूछ रही है — क्या भाजपा नेता भी अब यूपी में सुरक्षित नहीं?

कातिल कौन था, यह जानने के लिए किसी जासूस की जरूरत नहीं — बस साहस चाहिए। गांव जानता है, रिश्तेदार जानते हैं, व्यापारिक साझेदार जानते हैं। पर पुलिस? पूछताछ कर रही है, सीसीटीवी खंगाल रही है, लेकिन ठोस गिरफ्तारी नहीं।

अब जनता बोलेगी — “या तो इंसाफ दो या कुर्सी छोड़ो

सोनू चौधरी की हत्या केवल एक व्यक्ति का अंत नहीं, यह उस भरोसे की हत्या है जो जनता ने कानून पर रखा था। अगर सांसद के करीबी, भाजपा पदाधिकारी और प्रधानी के दावेदार को गोलियों से भूना जा सकता है तो आम आदमी किस खेत की मूली है?

और नया पुराने

Live users

0

نموذج الاتصال